डॉ. विकल का यह लघुकथात्मक कार्य बघेली बोली को भी समृद्ध करेगा – डॉ. अशोक भाटिया

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मित्रो, एक ही समय में लघुकथाओं पर संपादित किताबों का बघेली, गढ़वाली व अवधी में आना उत्साहवर्धक है।राम गरीब पाण्डेय ‘विकल’ द्वारा ‘देश विदेश से लघुकथाएं’ नाम से बघेली में अनुवाद व प्रकाशन, डा.कविता भट्ट द्वारा लघुकथा डॉट कॉम में गढ़वाली में अनूदित लघुकथाओं का पुस्तक रूप में प्रकाशन और हिंदी की चुनिंदा लघुकथाओं का सविता मिश्रा अक्षजा द्वारा अवधी में अनुवाद और प्रकाशन वास्तव में लघुकथा-साहित्य का लोक की ओर अर्थात जड़ों की ओर जाने का ज़रूरी कदम है. यहां पर हम अशोक भाटिया द्वारा बघेली पुस्तक के लिखे गये दो शब्द प्रस्तुत कर रहे हैं।

इस पुस्तक में शामिल सत्तर लघुकथाएँ, मेरी सम्पादित पुस्तक ‘देश-विदेश से कथाएँ’ के दूसरे संस्करण से चयनित की गयी हैं। इस संस्करण में मैंने एशिया, यूरोप, उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका महाद्वीपों की 19 भाषाओं के 83 लेखकों की 122 लघुकथाओं को शामिल किया है। डॉ. विकल ने अपने दृष्टिकोण से सत्तर लघुकथाएँ चुनते समय सभी 19 भाषाओं की लघुकथाओं को अनुवाद के लिए चुना है। यह पुस्तक डॉ. विकल की उदारता एवं उत्साही वृत्ति का उद्घोष करती है। वे बघेली भाषा और साहित्य के मर्मज्ञ हैं और उसके इतिहास पर बड़े मनोयोग से तैयार किया गया एक ग्रन्थ पहले ही बघेली की झोली में डाल चुके हैं। आशा है कि डॉ. विकल का यह लघुकथात्मक कार्य बघेली बोली को भी समृद्ध करेगा। सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए डॉ. विकल हार्दिक बधाई और साधुवाद के पात्र हैं।

भारत बहुभाषी देश है। इसकी छब्बीस मान्यताप्राप्त भाषाएँ हैं और बोलियाँ तो असंख्य हैं। प्रत्येक भाषा अपनी बोलियों से ही समृद्ध होती है। हमारे दैनन्दिन जीवन का जीवन्त संवाद बोलियों के माध्यम से ही होता है। भाषाएँ और बोलियाँ तो हवाएँ हैं, जो मनुष्यों के साथ-साथ नये-नये क्षेत्रों में प्रवेश करती हैं। यात्रा करती हुई कहीं से कहीं पहुँच जाती हैं। उन क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं। सांस्कृतिक समृद्धि के बीज बिखेरती हैं। इसका परिणाम होता है- समृद्ध साहित्य का स्थायी भण्डार। इसकी बानगी के रूप में कबीर और तुलसी का साहित्य देख सकते हैं। रामचरित मानस में ही अरबी और फारसी के एक हजार से अधिक शब्द मिलते हैं। यह समृद्धि, सम्पर्क और आदान-प्रदान से ही आती है।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक बृहद कारक है अनुवाद। भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए ही नहीं, वैश्विक धरातल पर मानव मात्र के लिए साहित्य का अनुवाद विश्व को एक सूत्र में पिरोने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण और कारगर उपक्रम है। इससे मानवीय विश्व-दृष्टि का एक रचनात्मक आयाम सामने आता है और मनुष्य की विचार सरणियों और लेखन की विभिन्न पद्धतियों से परिचय मिलता है। आज प्रत्येक स्तर पर अनुवाद की ज़रूरत और अधिक अनुभव की जा रही है। अनुवाद वे कबूतर हैं, जो अपने मुख कलम में एक स्थान की भाषा, सभ्यता, संस्कृति, संवेदना, सोच को लेकर (अनुवाद माध्यम से) दूसरे स्थान, प्रदेश, देश, महाद्वीप में पहुँचते हैं और बदले में किसी दाने (धन, पुरस्कार, सम्मान) की अपेक्षा नहीं रखते। ज़रा सोचिए मदनलाल मधु ने श्रेष्ठ रूसी साहित्य (युद्ध और शान्ति, अन्ना करेनिना जैसे क्लासिक उपन्यासों आदि) का, रांगेय राघव ने शेक्सपियर के बारह नाटकों का, या कि हरिवंशराय बच्चन ने शेक्सपियर के तीन नाटकों का पद्यात्मक अनुवाद, या यीट्स की प्रतिनिधि कविताओं का (‘मरकत द्वीप का स्वर’ नाम से) अनुवाद न किया होता, तो हिन्दी भाषी समाज इनसे कैसे परिचित होता? सूची बहुत लम्बी है। उसके लिए अलग से एक पुस्तक की ज़रूरत पड़ेगी। अल्बेयर कामू, चेखव और स्टेनबैक के कथा-साहित्य का राजेन्द्र यादव द्वारा किया अनुवाद हो, या अमृतलाल नागर द्वारा चेखव की कहानियों का अनुवाद, इन सभी कारीगरों ने अनुवाद के पुल बनाकर विश्व-समाज को देश-विदेश में आवाजाही की सुविधा प्रदान की। बोलियों, भाषाओं और संस्कृतियों पर प्रहार के वर्तमान दौर में, ऐसे कार्यों की उपयोगिता, महत्व और ज़रूरत और भी बढ़ गयी है।

अनुवाद वास्तव में दोधारी तलवार पर चलने वाली कला है। एक तरफ स्रोत भाषा तो दूसरी तरफ अनुवाद की लक्ष्य भाषा, दोनों को साधना होता है। स्तरीय अनुवाद की एक बड़ी पहचान यह है, कि अनूदित रचना भी मूल रचना सरीखी लगे।

डॉ. विकल का धन्यवाद कि उन्होंने मेरी सम्पादित पुस्तक ‘देश-विदेश से कथाएँ’ को लघुकथा चयन का आधार बनाया। विश्वास है कि बघेली बोली बोलने वाले समाज में यह पुस्तक चर्चित और लोकप्रिय होगी।

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