‘एकालाप’ को पढ़ते हुए मुझे सबसे पहले ग़ालिब के शे’र याद आए–
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
—
हो चुकी ग़ालिब बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग -ए- नागहानी और है
हिन्दी में मौत पर बहुत कम लिखा गया है।इक्का दुक्का किसी कवि ने भले एक दो कविताएँ लिखी हों, जम के किसी ने नहीं लिखा। इस संदर्भ में मुझे उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित मौत पर लिखी 11 कविताओं की याद आती है जो उनके काव्य संग्रह ‘ पीली चोंच वाली चिडिया के नाम ‘ में संकलित हैं। सवाल हो सकता है कि मौत पर कविताएँ कम क्यों हैं?इसका जवाब अमित मनोज देते हुए लिखते हैं–” कभी न मरने की सोचकर ही हम तमाम तरह की चालाकियाँ- बईमानियाँ जीवन भर करते रहते हैं और कमाल की बात देखिए, ऐसा करते हुए हमें ज़रा भी न शर्म आती, न अफ़सोस होता।” मौत को भूले रहने में ही भला है।सो कवि लोग भी कई बार यह सोच कर कि इसमें कहने को क्या है,इस पर सोचने को तैयार नहीं हैं।हम जीवन की बात करे, मौत पर क्यों करें?बस इस पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं।कुछ तो इसे दार्शनिक विचार कह कर परे कर देते हैं।
मनोज की इन कविताओं में मौत के प्रति जिज्ञासा से उत्पन्न विभिन्न रूपों को अभिव्यक्ति मिली है।इन कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कवि ने इन्हें अकारण बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया।इससे अभिव्यक्ति सटीक और सशक्त हो गई है।इनमें एक सहजता है जो कवि की जिज्ञासा को विविध पक्षों से देखने को मजबूर करती है ।’नींद की तरह’, ‘किस रूप में’, ‘ बैठ जाएगी’, ‘मृत्यु के हाथ में, ‘ मिलन’, ‘पहला तो नहीं मैं’, ‘रंग’,’ बतियाना ‘ जैसी कविताओं में एक अबोध बालक की जिज्ञासा दिखाई पड़ती है जो मृत्यु को कई आयामों से देखने की कोशिश करती है।कवि कोई दार्शनिक लबादा नहीं ओढ़ता, न ही कुछ अनोखा या अद्भुत कहने का प्रयत्न करता है।’एकालाप’, ‘चाक’, ‘ शहर’ जैसी कविताओं को बड़ी आसानी से खूबसूरत दार्शनिक जामा पहनाया जा सकता है, इसे जटिल किया जा सकता है, मगर कवि ने इसे सहज सोच का हिस्सा रहने दिया है।
इन कविताओं की भाषा इतनी सहज है कि सामान्य जन इसे बड़ी आसानी से समझ सकता है।बोधगम्यता इसकी सबसे बड़ी ख़ूबी है। मृत्यु जैसे विषय पर 34 कविताओं यह लघु काव्य- संग्रह हिन्दी का संभवत: पहला काव्य-संग्रह है।मनोज के पास सहजता के साथ अपनी बात को अभिव्यक्त करने की विशेष क्षमता है।उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपनी इस क्षमता का परिचय देते हुए कुछ और नया सृजनात्मक ज़रूर देंगे।

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