नवांकुर लेखकों के लिए जरूरी किताब ‘परिंदे पूछते हैं’, डॉ. उमेशचंद्र सिरसवारी

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समीक्षक: डॉ. उमेशचंद्र सिरसवारी

परिंदे पूछते हैं
अशोक भाटिया
प्रकाशक: लघुकथा शोध केंद्र,
भोपाल (म.प्र.)
पृष्ठ : 144
मूल्य रु.100%

लघुकथा जीवन की सच्चाई का पर्याय है। इसकी आकृति को लेकर तरह-तरह के विचार सामने आते रहे हैं। लघुकथा रचना प्रक्रिया की जहाँ तक बात है, यह मुद्दा विमर्श का नहीं, यह कलमकार का अपना व्यक्तिगत मामला है, इसे किसी नियम में नहीं बाँधा जा सकता। इससे यथार्थता प्रभावित होती है। लघुकथा के विकास में ये नियम बाधा बन सकते हैं। आज लघुकथा यदि इतनी समृद्ध है तो उसकी वजह लेखक की स्वतंत्रता है। भले ही पाठकों की कमी हो, परंतु लघुकथा को विस्तार और कथाकारों को पहचान मिली है। यह लघुकथा के विकास की दृष्टि से स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। इससे यह सिद्ध हो चुका है कि लघुकथा अनुभूति है, जीवन-दर्शन है, सार्थक एवं सफल बिधा है। लघुकथा की शब्द-सीमा निर्धारित करना कठिन है। कहानी की तुलना में लघुकथा में काफी लघुता होनी चाहिए, परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि लघुकथा अपना मकसद न भूल जाए। कथा की जीवंतता, उपयोगिता और प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि उसका आकार लघु हो और नवीनता बनी रहे। हाँ, लघुकथा लेखन में लेखक अपनी भाषा-शैली के लिए स्वतंत्र है, लेखक की अपनी भाषा-शैली खुद के लिए आदर्श हो सकती है, परंतु सभी को यह मान्य हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हाँ, रचनाकार की भाषा-शैली ऐसी होनी चाहिए, जो पाठकों के मन में उतर जाए और ऐसी कथा से उपजे विचार साहित्य, देश और समाज के उत्थान की दृष्टि से हितकारी हों। यह वचनबद्धता लघुकथा को समृद्ध करने में विकास और इस आंदोलन की प्राणवायु साबित हो सकती है।

उक्त संदेश डॉ. अशोक भाटिया स्वलिखित परिंदे पूछते हैं (लघुक्या-विमर्श) पुस्तक में देते हैं। इस पुस्तक की ‘भूमिका’ लघुकथा क्षेत्र की सशक्त हस्ताक्षर श्रीमती कांता राय और डॉ. मालती महावर ने लिखी है। अपनी बात रखते हुए कांता राय लिखती हैं- ‘इसमें प्रश्नकर्ता ये सभी नवलेखक वृंद हैं, जो लघुकथा लेखन करते हुए अब तक भ्रामक स्थितियों झेल रहे हैं। वे सभी कथानक के चुनाव पर, तो कभी बातों के दोहराव पर उलझन महसूस करते हैं; कभी लघुकथा का ढीलापन उन्हें विचलन देता है, तो वहीं कालखंड दोष बड़ा-सा प्रश्नवाचक चिह्न बनकर उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है। लघुकथा और कहानी में फर्क, एक और बड़ा सवाल सुरसा की तरह मुँह फाड़कर बार-बार सामने आ खड़ा हो जाता है। इन सभी सुरसाओं का संहार इस पुस्तक में किया गया है।

यह पुस्तक उन नवांकुर लेखकों के लिए है, जो लघुकथा के क्षेत्र में नए हैं और लघुकथा लिखना सीखना चाहते हैं। वे इस पुस्तक से लघुकथा का अर्थ पढ़ और समझ सकते हैं। यह पुस्तक न केवल उन्हें लघुकथा लेखन की बारीकियों सिखाती है, बल्कि उन पाठकों की पूरी जिज्ञासा को शांत भी करती है। पुस्तक की दूसरी भूमिका’ डी. मालती महावर ने लिखी है। वे इस पुस्तक को शोध केंद्र की वाटिका का पुष्प बताती हैं। ये लिखती है यह पुस्तक नवांकुरों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भविष्य में लघुकथा ही सब विद्याओं की सिरमौर होगी। यह पुस्तक नवलेखकों को लघुकथा के संस्कार देगी, शिक्षा भी देगी।’

इस पुस्तक में ‘लघुकथा-विमर्श’ को केंद्र में रखकर निम्न विषयों पर सार्थक विमर्श किया गया है-लघुकथा की शब्द संख्या/ लघुकवा, मिनी कथा, लघु कहानी, कहानी/ हल्की-फुल्की बनाम भारी-भरकम लघुकथा/ लघुकया बनाम आत्मकथा, सत्यकथा/ पढ़ना, अध्ययन करना/ लघुकया में कल्पना का प्रयोग/ लघुकथा के विषय लघुकथा में पात्र संख्या, नामकरण, चरित्र/ लघुकथा में संवाद शैली लघुकथा में संदेश-सकारात्मक अंत लघुकथा का शीर्षक लघुकथा और पाठक/ रचना बनाम विधा/ लघुकथा लिखने की प्रक्रिया/ लघुकथा में लेखकीय प्रवेश, इ-च-हू लिखना/ लेखन में स्वतंत्रता बनाम मर्यादा/ लघुकथा में व्यंजना/ लघुकथा में ययार्य और आदर्श लघुकथा लेखकीय कमजोरियाँ / लघुकथा में काल-दोष: राई का पहाड़ लघुकथा में पंचलाइन लघुकथा के मानक को लेकर भ्रम/ लघुकथा की भाषा तथा लघुकथा में विंव, प्रतीक, दृश्यांकन आदि। वर्तमान समय लघुकथाओं का है। समय की माँग है, इसको ध्यान में

रखते हुए लेखन भी अहमियत भरा कार्य है। लघुकथा की अपनी सुनिश्चित दिशा के साथ जीवन-दृष्टि भी होती है। लघुकथाएँ वृहदू रूप की सारांश होती हैं, जिसे आज पाठक पसंद कर रहे हैं। लघुकथा समय के साथ मानव-मन की गहराई तक को छू लेती है और अंतर्मन को झकझोर देने की ताकत भी रखती है, बशर्ते विषय-वस्तु प्रभावी हो। सच है, जीवन संग्राम में होने वाली हर घटना, चाहे वे सामाजिक हो, धार्मिक हो, आर्थिक हो, राजनैतिक हो या अन्य मुद्दे हो, को कथाकार हर पहलु पर सूक्ष्मता से चिंतन-मनन करता है, इसके बाद लघुकथा का सृजन करता है, तभी ये कथाएँ दिल और दिमाग पर अमिट प्रभाव छोड़ती हैं। लघुकथा पाठक को झकझोरने का माद्दा रखती है, परंतु प्रस्तुति के साथ कथानक असरदार हों, क्योंकि लघुकथा में काफी कुछ कहना शेष रहता है, जिसे पाठक पढ़ने के बाद खुद सोच-विचार में जुट जाता है। संभवतः, लघुकथा व्यक्ति विशेष की कथा नहीं होती, लघुकथा किसी के साथ घटी घटना होती है, जिसमें वैयक्तिकता की प्रधानता नहीं होती है। यह लघुकथा बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहती है और यही लघुकथा का प्रभाव होना चाहिए। लघुकया जीवन के किसी समस्या की सपाटबयानी होती है, दूसरी ओर एक सत्य को उजागर करने का प्रयास भी है। लघुकथा में विषय, कथानक और जीवन की समस्याओं का चित्रण लघुकथाओं में नजदीक से देखने को मिलता है। लघुकथा दृष्टि है, सोच है, समझ है, चिंतन है, अनुभव और यथार्थ की अभिव्यक्ति है अर्थात लघुकथा लघु रूप में होते हुए समग्र है, विराट है। यही कारण है कि लघुकथा अन्य विधाओं से अलग स्थान बना चुकी है, एक विकसित विधा बन चुकी है।

साभार, पुस्तक संस्कृति, जनवरी-फरवरी 2024

6 responses to “नवांकुर लेखकों के लिए जरूरी किताब ‘परिंदे पूछते हैं’, डॉ. उमेशचंद्र सिरसवारी”

  1. Divya Sharma Avatar
    Divya Sharma

    मेरे पास यह पुस्तक है और बहुउपयोगी पुस्तक है यह ।जिन लोगों को लघुकथा लेखन में रूचि है वह यह पुस्तक जरूर खरीदें।

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  2. Anil Attri Avatar
    Anil Attri

    बहुत ही बहुमूल्य समीक्षा और जानकारी! सस्नेहाभिवादन!!

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  3. Jai Pal Avatar
    Jai Pal

    लघु कथा का इतिहास रचने में एक सार्थक प्रयास

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  4. Meenakshi Anand Avatar

    बहुत बढ़िया 🙏🙏, अभी कुछ समय पहले ही मैं ने लघुकथा लिखना शुरू किया है। मैं भी इस पुस्तक को पढ़ना चाहती हूंँ।🙏🙏 प्रणाम

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  5. Meenakshi Anand Avatar

    🙏🙏 नमस्कार, मैंने भी अभी कुछ ही समय पहले लघुकथा लिखना शुरू किया है । मैं भी शीघ्र अति शीघ्र पुस्तक को पढ़ना चाहती हूंँ कृपया बुक पब्लिकेशन का लिंक भेज दीजिए।

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